(उत्तरकाशी) पुरोला :”पर्वतों पर बर्फ नहीं, अब आसमान से गिरा कहर…”—ये शब्द आठ गांव सरबडियार पट्टी के किसानों की पीड़ा बयां करते हैं

गढ़ देश न्यूज़ अरविन्द जयाडा

सर बडियार (उत्तरकाशी):”पर्वतों पर बर्फ नहीं, अब आसमान से गिरा कहर…”—ये शब्द सर बडियार घाटी के किसानों की पीड़ा बयां करते हैं।

सुदूरवर्ती क्षेत्र आठ गांव सर बडियार में रविवार को हुई भारी ओलावृष्टि ने किसानों की रही-सही उम्मीदें भी छीन लीं। सेव आलू, गेहूं, जो की क्यारियों में जहां कल तक हरियाली थी, अब वहां सिर्फ उजड़ा खेत है।

बडियार क्षेत्र में विकास के नाम पर बुद्धिजीवी एवं नेताओं ने बनाई कई समितियां, रहें अपने ही विकास तक सिमीत । गरीब पलायन को मजबूर ।

सरबडियार घाटी के आठ गांवों की मुख्य आजीविका खेती ही है। सड़क जैसी बुनियादी सुविधा से अब भी महरूम इस अति पिछड़े क्षेत्र में काश्तकारी ही जीवनरेखा है। लेकिन अब मौसम की दोहरी मार—पहले 23 जुलाई 2023 को अति वृष्टि की मार से यह क्षेत्र उभरा नहीं और अब ओलावृष्टि—ने फसल को पूरी तरह तबाह कर दिया है।

सरकार और प्रशासन की चुप्पी किसानों को कचोट रही है।23 जुलाई 2023 की आपदा में भी जब पगडंडियां, और खेत बह गए, तब भी ना कोई सर्वे हुआ, ना कोई राहत पहुंची। यहां के नेताओं ने हेलीकॉप्टर से सर्वे पुरोला तक किया परंतु उनकी नजर में सरबडियार का यह पिछड़ा क्षेत्र तब भी छुटा और अब भी ,

किमडार से पोन्टी मैं झूला पुल की घोषणा जस की तस लोग जान पर खेल कर खड पार करते है पर चिंता न तो सरकार को ना जनप्रतिनिधियों को।

स्थानीय ग्रामीणों के अनुसार तब से अब तक जनप्रतिनिधियों ने एक बार भी क्षेत्र का दौरा नहीं किया।”कसूर क्या है हमारा?”—यह सवाल हर किसान की आंखों में है।

24 साल का उत्तराखंड व 78 साल आज़ादी के बाद भी बडियार में न सड़क पहुंची, न स्वास्थ्य सुविधा, न शिक्षा और न आपदा राहत का भरोसा। ऊपर से अब जब गेहूं और जो सेव जैसी फसलें भी ओलावृष्टि से बर्बाद हो गईं, तो लोगों के पास आजीविका का कोई सहारा नहीं बचा।

स्थानीय ग्रामीणों की मांग है:तत्काल राजस्व टीम द्वारा नुकसान का सर्वे कराया जाए।आपदा राहत कोष से मुआवजा दिया जाए। परंतु वह उम्मीद क्या करेंगे जिनको 23. 7 .2023 की अतिवृष्टि से हुए नुकसान का भी मौज नहीं मिला ।

आखिर किस प्रकार के विकास के ढोल लोग पुरोला विधानसभा में पीट रहे , परंतु लोग उम्मीद के साथ यह सोच रहे हैं कि क्षेत्र को दुर्गम व अति पिछड़ा घोषित कर विशेष सहायता दी जाए।

परन्तु सड़क, स्वास्थ्य व शिक्षा जैसी मूलभूत सुविधाएं जल्द से जल्द उपलब्ध कराई जाएं।विकासशील देश के सपने में बडियार की तस्वीर धुंधली क्यों?

जब सरकार ‘विकसित भारत’ की बात करती है, तब सर बडियार जैसे इलाके इस दावे को कटघरे में खड़ा करते हैं। जहां आज भी खेत तक पहुंचने के लिए घंटों पैदल चलना पड़ता है, वहां विकास की बात बेमानी लगती है।

अब सवाल ये है कि क्या कोई सुनने वाला है इन पहाड़ों की पुकार?— या फिर यहां के क्षेत्र वासियों को होना पड़ेगा पलायन करने मजबूर।

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