सरनौल हत्याकांड: चुप्पी, छूट और क्या चुपके से मिटाए गए साक्ष्य — क्या यही है उत्तराखंड की न्याय प्रणाली?
विशेष संपादकीय रिपोर्ट |
गढ़ देश न्यूज़ – अरविन्द सिंह जयाड़ा“
जब न्याय की प्रतीक्षा लाठीचार्ज से लंबी हो जाए,और सच्चाई को मिट्टी में दबा दिया जाए,तब गांव का एक कोना भी राजधानी से बड़ा सवाल बन जाता है।
”उत्तरकाशी जनपद के दुर्गम गांव सरनौल में हुए कपिल चौहान हत्याकांड ने उत्तराखंड की न्याय प्रणाली, पुलिस कार्यप्रणाली और प्रशासनिक संवेदनशीलता पर गहरे सवाल खड़े कर दिए हैं। यह अब महज एक पारिवारिक शोक का विषय नहीं, बल्कि समूची व्यवस्था की चुप्पी और चेतना के पतन का प्रतिक बन चुका है।—
सुनियोजित चूक या नियोजित मौन?
मृतक कपिल चौहान के भाई अपील चौहान के अनुसार, जब पुलिस पहली बार घटनास्थल पर पहुंची, तब खून से सने बिस्तर और थैली को उठाने की बजाए सिर्फ वीडियो बनाकर लौट गई। यही वह क्षण था जब निष्पक्ष जांच की उम्मीदें धराशायी हो गईं। अपील की आंखों में वह क्षण आज भी तैरता है, जब साक्ष्य को संभालने की अपील को मात्र एक औपचारिकता बनाकर टाल दिया गया।—
“अगर हत्या थी तो पोस्टमार्टम क्यों नहीं?” –
पुलिस का उल्टा सवाल पुलिस की यह टिप्पणी न केवल संवेदनहीनता दर्शाती है, बल्कि यह भी दिखाती है कि विवेचना की दिशा पीड़ित की ओर नहीं, खुद को बचाने की ओर मोड़ी जा रही है। सदमे में डूबे परिवार को समय पर कोई कानूनी सलाह नहीं दी गई – न प्रशासन की ओर से, न ही गांव के प्रभावशाली लोगों द्वारा।—
पेड़ को जलाना – साक्ष्य मिटाने की कोशिश या ग्रामीण परंपरा?कपिल की लाश जिस पेड़ के नीचे मिली थी, उसे काटकर जला दिया गया। क्या यह सामान्य ग्रामीण परंपरा थी या साक्ष्य मिटाने की सुनियोजित कोशिश? और जब पुलिस को इस पर सवाल उठाने चाहिए थे, तब वो सिर्फ फाइल में ‘क्लोज नोट’ जोड़ती रही।—
छानी कोठारी – सबूतों की सफाई या सबूतों का संहार?अपील चौहान बताते हैं कि जब CO और थानाध्यक्ष दूसरी बार मौके पर पहुंचे, घटनास्थल चमक रहा था – कोठारी खुन के निशान गायब। यह ‘सफाई’ किसने और किसके कहने पर की? क्या यह ‘ग्रामीण स्वच्छता अभियान’ था या साक्ष्य के सामूहिक संहार की क्रिया?—
गोबर में छुपा मफलर – गवाह जो अनसुना रहा कपिल का मफलर गोबर के नीचे दबा मिला, लेकिन उसे भी जांच का हिस्सा नहीं बनाया गया। क्या अब गंध से भी पुलिस आंखें मूंद रही है?—FIR में 24घटे भीतर दर्ज होने की वजाय 35 दिनो की देरी – क्यों?
13 मई को पुलिस ने केस दर्ज किया, जबकि 11 मई को प्रेसवार्ता के जरिए पूरा राज्य इस घटना की जानकारी ले चुका था। आखिर दो महीने तक पुलिस क्या कर रही थी? क्या आरोपी खुलेआम साक्ष्य मिटाते रहे, और व्यवस्था सोती रही?—
दूसरी वारदात के बाद जागी पुलिस, मगर मुख्य आरोपी गिरपत से अब भी बाहर ,
मृतक की भाभी बबीता बहिन के साथ दूसरी बार मारपीट हुई। मेडिकल रिपोर्ट के आधार पर केस दर्ज हुआ और मीडिया खबर लगने के बाद कुछ समय बाद दबाव में PAC गांव में तैनात की गई। लेकिन मृतक के परिवार के सदस्य भय के कारण गांव छोड़कर बड़कोट में फिर सुरक्षा किसकी ?
बड़ा सवाल ये – जिस हत्या से ये सब शुरू किया, उसके आरोपी अब तक पुलिस की पकड़ से बाहर क्यों हैं?
—जनता की पुकार – अब चुप्पी नहीं, जवाब चाहिए सरनौल गांव की गलियों में अब सिर्फ मातम नहीं, न्याय की नई पुकार भी है। कपिल चौहान की मौत सिर्फ एक युवक की मृत्यु नहीं, यह राज्यव्यवस्था की लाचार तस्वीर है – जो पूरे उत्तराखंड को झकझोर रही है।-