उत्तराखंड में सख्त भू-कानून लागू: अनियंत्रित भूमि खरीद-बिक्री पर रोक, 11 जिलों में बाहरी व्यक्ति नहीं खरीद सकेंगे
जमीनदेहरादून, 3 मई।उत्तराखंड सरकार ने राज्य की भौगोलिक और सांस्कृतिक संरचना की रक्षा के लिए ऐतिहासिक कदम उठाते हुए भूमि विकास और सुधार अधिनियम, 2025 के तहत सख्त भू-कानून को लागू कर दिया है।
इस कानून को उत्तर प्रदेश जमींदारी विनाश एवं भूमि व्यवस्था अधिनियम, 1950 (अनुकूलन एवं उपबंधन आदेश, 2001) के तहत संशोधित कर लागू किया गया है।
राज्यपाल की मंजूरी के बाद यह विधेयक अब प्रभाव में आ गया है।इस कानून का उद्देश्य राज्य में भूमि की अनियंत्रित खरीद-बिक्री पर रोक लगाना है, विशेषकर बाहरी लोगों द्वारा पर्वतीय जिलों में भूमि खरीद की बढ़ती प्रवृत्ति को नियंत्रित करना।
मुख्य विशेषताएं:
11 पर्वतीय जिलों में भूमि प्रतिबंधित: नैनीताल, ऊधमसिंहनगर, टिहरी, पौड़ी, बागेश्वर, चमोली, चंपावत, उत्तरकाशी, पिथौरागढ़, रुद्रप्रयाग और अल्मोड़ा में बाहरी व्यक्ति अब कृषि या अनियमित श्रेणी की भूमि नहीं खरीद सकेंगे।भूमि खरीद की सीमा तय: अधिकतम 12.5 एकड़ तक ही भूमि की खरीद अनुमन्य होगी।भूमि उपयोग स्पष्ट करना अनिवार्य: होटल, उद्योग, स्कूल, अस्पताल, संस्थान या अन्य उद्देश्य से भूमि खरीदने के लिए पूर्व अनुमति व उपयोग स्पष्ट करना अनिवार्य होगा।
रजिस्ट्रार को शपथ पत्र अनिवार्य:
क्रेता को रजिस्ट्री से पूर्व शपथ पत्र देना होगा, जिसमें उपयोग का विवरण और सही जानकारी देनी होगी।2018 की व्यवस्था समाप्त: पूर्व की 2018 में लाई गई उदार भूमि नीति को निरस्त कर दिया गया है।
मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने क्या कहा ?
मुख्यमंत्री ने कहा, “राज्य में भू-कानून लागू हो गया है। जनभावनाओं के अनुरूप यह कानून उत्तराखंड में भूमि की अनियंत्रित बिक्री को पूरी तरह रोकता है। इससे अराजक निर्माण, माफिया गतिविधियों, अवैध कॉलोनियों और बाहरी दबावों से राज्य को राहत मिलेगी।
”पृष्ठभूमि और सामाजिक संदर्भ:
उत्तराखंड के पर्वतीय जिलों में भूमि की बाहरी खरीद को लेकर लंबे समय से जनआंदोलन और सामाजिक संगठनों की मांग रही है। यह कानून ऐसे समय आया है जब राज्य में माटी, संस्कृति और पहचान की रक्षा को लेकर जनसवाल तेज़ हो रहे थे।
सामाजिक संगठनों ने इस फैसले का स्वागत किया है
और इसे “राज्य की अस्मिता की रक्षा” से जोड़ा है।क्या होंगे संभावित प्रभाव?स्थानीय युवाओं के लिए अवसर: भूमि की रक्षा से स्थानीय उद्यमिता को बढ़ावा मिलेगा।जनसंख्या दबाव नियंत्रित: बाहरी बसावट और दबाव कम होगा।संस्कृति और पर्यावरण संरक्षण: पर्वतीय जीवनशैली और जैव विविधता को संरक्षण मिलेगा।
रियल एस्टेट पर असर:
शहरी क्षेत्रों में संपत्ति बाजार पर सीमित असर पड़ सकता है, लेकिन दीर्घकालिक संतुलन सुनिश्चित होगा।—
निष्कर्ष:
उत्तराखंड सरकार का यह निर्णय केवल एक प्रशासनिक कदम नहीं बल्कि आर्थिक, सांस्कृतिक और पारिस्थितिक संतुलन की दिशा में एक दूरदर्शी पहल है। अब देखना यह होगा कि सरकार इस कानून के कार्यान्वयन को कितनी पारदर्शिता और सख्ती से लागू करती है।-